**लिख देना **

**लिख देना **

जब धुआं आसमान पर हावी हो जाए,
जब दम घुटने को हो जाए,
जब लगे कि बस अब कुछ बचा नहीं,
सब सोए हैं कोई जगा नहीं,

उस वक़्त उठाना कलम तुम,
इनकलाब लिख देना।

आने जाने वालों के हाथों पे,
इक ख्वाब लिख देना।
इक ख्वाब लिख देना।

जब तलवारें खनकने लग जाएं,
कोलाहल हद से बढ़ जाए,
जब लगे सच कहीं गुम सा है,

हर तरफ जब सिर्फ ललकारें हों,
सब फेंक रहे अंगारे हों,
किलकारी नन्हें बच्चे की,
जब भीड में दबने लग जाए,

उस वक़्त उठाना कलम तुम,
इनकलाब लिख देना।

आने जाने वालों के हाथों पे,
इक ख्वाब लिख देना।
इक ख्वाब लिख देना।

याद दिलाना तुम उनको,
लोगों के बलिदानों की,
संघर्षों की लहू लुहानों की
मजदूर के पसीने की,
कसम भी तुम दे देना,

हाँ, फिर भी वे शायद नहीं सुनें,
वे नशे में भी हो सकते हैं
तुम लिखने वाले इक होगे,
वे सौ के सौ हो सकते हैं

जब दुनिया की हर इक ताकत,
बस एक तरफ को हो जाए,
जब नन्ही बच्ची के हाथ,
दुआ में, हवा में हो जाए,

उस वक़्त उठाना कलम तुम,
इनकलाब लिख देना।

आने जाने वालों के हाथों पे,
इक ख्वाब लिख देना।
इक ख्वाब लिख देना।

ये वक़्त की ही बात है बस,
वो वक़्त भी जल्दी आयेगा,
फूट के बरसेगा बादल,
सब आग धुआं हो जायेगा,
घनघोर घटा भी छायेगी,
सब पानी पानी हो जायेगा,
मोर झूम के नाचेंगे,
सब हरा भरा हो जायेगा

उस वक़्त उठाना कलम तुम,
इनकलाब लिख देना।

आने जाने वालों के हाथों पे,
बस यही ख्वाब लिख देना।
बस यही ख्वाब लिख देना।

– राहुल सुधा।

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